आया बसन्त, महका दिगन्त,
बहती बयार, अविरल अमन्द |
पीतपट से आच्छादित अवनि,
पर छायी ज्यों मादक सुगन्ध।
कण कण में घुलती नव सुगंध,
अब पुलकित कोकिल मिलिन्द|
मुझको लगता सचमुच भदन्त,
चेतना नयी ले आया बसन्त ||
यह अंत शरद का लाया बसन्त,
श्रृगार प्रकृति का करता बसन्त |
चहूँदिशि फैलाये मादक सुगन्ध,
ऋतुराज बन गया अब बसन्त ||
चहूँदिशि फैलाये मादक सुगन्ध,
ऋतुराज बन गया अब बसन्त ||
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