भुला बैठा जिस गम को ,वही क्यों पास आता है |
समय दूरी का बंधन भी ,नहीं क्यों रोक पाता है ||
रहम खाते तनिक भी तो इस कदर जुर्म ना ढाते |
सजायें दे दिए जिनकी, उन्हें फिर पास ना लाते |
मेरी तकदीर से खेलना ,अब उनकी जरूरत है |
मेरा संघर्ष में पलना , अब उनकी वसीयत है ||
गवां बैठा जिस पल को,वह कोई सौगात लाता है |
भुला बैठा जिस गम को,वही क्यों पास आता है ||
नेत्र में अश्रु भी आते हैं तो उनकी ही अपेक्षा से |
ओठों पर मुस्कराहट भी,उनकी ही सियासत है ||
छोडा नहीं कुछ भी,जिसे अपना मैं कह पाता |
यही दुर्भाग्य अब मेरा, जिसे हर बार मैं पाता ||
हकीकत भी इसे अबतक ,नहीं क्यों रोक पाता है|
भुला बैठा जिस गम को,वही क्यों पास आता है||
जख्म के बारे में अपनी राय व सुझाव अवश्य भेजें ,धन्यबाद
जवाब देंहटाएंकभी कभी मिलते रहो और गुफ्तगूं करते रहो |
जवाब देंहटाएंएक दुसरे को जानने की हर कोशिशें करते रहो||
दिल की कुछ बातें हैं जो जुबा पर नहीं आती|
जवाब देंहटाएंखामोशियों के आईने में खुदबखुद दिख जाती ||
जीने और मरने की कसमें हम खाते रहे |
जवाब देंहटाएंचंद और सितारे तक कदमों में रखते रहे||