जिस दिल की आरजू कभी मुहब्बत न पा सकी
अब बदले में वह नफरतों का सैलाब ढो रही है |\
किस्मत को दोष दूं या अपना गुनाह मान लूं |
दिल को तसल्ली कैसे दूं सच्चाई तो जान लूं |
|कुदरत भी ना लगा पाई जिस चीज पर पाबंदी |
उन रंगीन फिजाओं में पतझड़ का बसेरा देखा ||
इन्सान से फरिश्ते तक की दूरी जो मिटायी हमने |
लगता ख्वाब था सच्चाई तो अब दिखायी तुमने ||
अदाओं को इबादत का जामा तो पहना ही दिया है |
अब बहार आने पर कलियों को चटकना ही होगा ||
तेरी यह मुस्कान और निगाहों की थिरकनें |
हकीकत में कोई रंगीन शरारत तो नहीं हैं ||
जिसे मैं प्यार की मंजिल समझ बैठा हूँ चुपके से |
तवस्सुम बेतकल्लुफ वह तेरी आदत तो नहीं है ||
ख्वाबों को हकीकत में बदलना तो जरा मुश्किल है |
अगर हाथ तुम बढाओ तो कोशिश एक मुमकिन है ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें