रविवार, 7 अगस्त 2011

सुनहरे पल

जिस दिल की आरजू कभी मुहब्बत न पा सकी 
अब बदले में वह नफरतों का सैलाब ढो रही है |\

किस्मत को दोष दूं या अपना गुनाह मान लूं |
दिल को तसल्ली कैसे दूं सच्चाई तो जान लूं |

|कुदरत भी ना लगा पाई जिस चीज पर पाबंदी |
उन रंगीन फिजाओं में पतझड़ का बसेरा देखा ||

इन्सान से फरिश्ते तक की दूरी जो मिटायी हमने |
लगता  ख्वाब था सच्चाई तो अब दिखायी तुमने ||

अदाओं को इबादत का जामा तो पहना ही दिया है |
अब बहार आने पर कलियों को चटकना ही होगा ||

तेरी यह मुस्कान और निगाहों की थिरकनें |
हकीकत में कोई रंगीन  शरारत तो  नहीं हैं ||

जिसे मैं प्यार की मंजिल समझ बैठा हूँ चुपके से |
तवस्सुम  बेतकल्लुफ वह तेरी आदत तो नहीं है || 

ख्वाबों को हकीकत में बदलना तो जरा मुश्किल है |
अगर हाथ तुम बढाओ तो कोशिश एक मुमकिन है ||

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