जन मन की नंगी अरमानें,
अनुशासित लौहकवच में हो |
मानव में प्रेम प्रवाह दिखे तो,
नीरवता हर जन-मन में हो ||
तभी स्वदेश मधुवन होगा ||
जन मन में कर्तव्य -प्रेम का ,
जब शोला धडके हो धूम्रहीन |
मानव की वाणी अमृत बनेगी ,
आनन्द-श्रोत सा दुःख-विहीन ||
तभी स्वदेश मधुवन होगा ||
सहयोग प्रदर्शन साथ- साथ ,
यदि जन- जन में छायी होगी |
श्रम की बूँद-बूँद से सिन्चित,
इन खेतों में हरियाली होगी ||
तभी स्वदेश मधुवन होगा ||
मातृभूमि के प्रेम सहित यदि,
भू-रक्षा का भी अरमान रहे|
उच्च शिखर पर देश रहेगा,
इस गौरव का अभिमान रहे||
तभी स्वदेश मधुवन होगा ||
जब श्रम की हरइक कीमत से,
इस धरती को स्वर्ग बनायेंगे |
तब विकास की लहरों से यह
वन उपवन भी सब लहरायेंगे |
वन उपवन भी सब लहरायेंगे |
तभी स्वदेश मधुवन होगा ||
नग्न क्षुधाकुल की काया भी ,
जब सुख की सासें लेती होंगी |
तब देश हमारा अपना होगा,
तब धरती यह अपनी होगी ||
तभी स्वदेश मधुवन होगा ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें