रविवार, 7 अगस्त 2011

बसन्त

यह बसन्त ----
बस अन्त शरद का 
अथवा  अन्त ------
जीर्ण पीत तरु पत्रों का |
सरसों अभी फूली नहीं ;
अरहर भी झनझनाई  नहीं |
शरद की अकड ,
अभी खत्म हुई नहीं |
आ गये ऋतुराज |
कू कू करती कोयल ,
फुदकने लगी डालों पर |
उपवन में तैरनी लगी-
मादक सुरभि;
कौतूहल ने सिर उठाया | 
बासन्ती घूँघट डालकर -
चल पड़ी पोखर को |
कहने लगीं सखियाँ,
कब होगा अन्त ;
अब इस शरद का |

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