निकल आयी आज -
चेतना की एक किरण ,
दिखाने अपने ही मन के
कुछ तार जो टूटे थे।
श्रीहीन थी जिनकी झंकार।
उस वाद्ययंत्र के
सभी तार
शिथिल हो गये थे ।
टूटे तारों को कसकर
उन पर ज्योंहि
उँगलियों को रखा
स्वर फूट पड़े।
अहं ब्रह्मास्मि।
अहं ब्रह्मास्मि।
अहं ब्रह्मास्मि।
चेतना की एक किरण ,
दिखाने अपने ही मन के
कुछ तार जो टूटे थे।
श्रीहीन थी जिनकी झंकार।
उस वाद्ययंत्र के
सभी तार
शिथिल हो गये थे ।
टूटे तारों को कसकर
उन पर ज्योंहि
उँगलियों को रखा
स्वर फूट पड़े।
अहं ब्रह्मास्मि।
अहं ब्रह्मास्मि।
अहं ब्रह्मास्मि।
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