अतीत का बौनापन ,
वर्तमान का संघर्ष और
भविष्य की सम्भावनायें ,
इन तीनों को समेटे हुए
हर एक गली में ,
गूंजने लगा फिरसे
वही पुराना सा राग।
"कसमें वादे निभाएंगे हम "
की परम्परागत घोषणा से
किंचित विचलित मतदाता
अपने कानों में
उंगलियां डाल लेते हैं।
ठीक वैसे ही,
जैसे प्रत्याशीगण जीतते ही
उनकी हरएक आवाज पर
उंगलियां डाल लेते हैं।
वर्तमान का संघर्ष और
भविष्य की सम्भावनायें ,
इन तीनों को समेटे हुए
हर एक गली में ,
गूंजने लगा फिरसे
वही पुराना सा राग।
"कसमें वादे निभाएंगे हम "
की परम्परागत घोषणा से
किंचित विचलित मतदाता
अपने कानों में
उंगलियां डाल लेते हैं।
ठीक वैसे ही,
जैसे प्रत्याशीगण जीतते ही
उनकी हरएक आवाज पर
उंगलियां डाल लेते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें