शनिवार, 8 अप्रैल 2017

फिर याद आया

अतीत का बौनापन ,
वर्तमान का संघर्ष और 
भविष्य की सम्भावनायें ,
इन तीनों को समेटे हुए 
हर एक गली में ,
गूंजने लगा फिरसे 
वही पुराना सा राग। 
"कसमें वादे निभाएंगे हम "
की परम्परागत घोषणा से 
किंचित विचलित मतदाता 
अपने कानों में 
उंगलियां डाल लेते हैं। 
ठीक वैसे ही,
जैसे प्रत्याशीगण जीतते ही 
उनकी हरएक आवाज पर 
उंगलियां डाल लेते हैं।

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