शनिवार, 10 दिसंबर 2011

इतिहास

जब जब देखता हूँ ,
अपने पास की भूमि को ,
ऊपर आकाश को |
और बगल में बैठे हुए ,
किसी असहाय को |
मन टूक हो जाता है |
उठाता हूँ लेखनी,
 लिखने को इतिहास
क्योंकि भविष्य अदृश्य है|
वर्तमान शून्य है |
 केवल अतीत ही, 
दिखायी पड़ता है |
 खोजने लगता हूँ, 
कुछ ऐसी ही घटनाएँ ,
कुछ संस्मरण ,
कुछ प्रतिवेद्नाएं ,
लिखता हूँ इतिहास |
जब हर वस्तु का ---
एक इतिहास होता ही है 
और मैं सिर्फ-------- 
इतिहास ही लिख  सकता  हूँ | 

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