मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

मुहब्बत

मुहब्बत को इतना, मुहब्बत करो तो ,
नफरत को नफरत, करनी  ही पड़ेगी। 
सफर जिन्दगी का, सुहाना बनाकर ,
नफरत को फिर से ,मुहब्बत मिलेगी। 
मुहब्बत की लय में इक, गहराईयां हैं ,
और नफरत में केवल, तनहाईयाँ हैं। 
प्रेम के भाव में इस, कदर डूब जाएँ ,
हो जाये रोशन खुद,खुदा की खुदाई। 
आओ मुहब्बत को, गले से लगाकर,
मुहब्बत से नफरत, की कर दें जुदाई।  

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