रविवार, 5 फ़रवरी 2017

जीवनगति

जीवन
अंतर्मन का
बाह्य सम्बन्धों  से ,
निरन्तर समायोजन
जबकि चरित्र
कर्मों के प्रतिबिम्ब हैं।
अंतर्चेतना और बाह्य जगत
का यही संघर्ष
जीवन को गति
प्रदान करता है
और इसी परिधि में
अंतर्चेतना
केंद्रीय सत्ता से संचालित होकर
जगत का निर्माण करती है।
मानव तो
साक्षी और भोक्ता
दोनों रूपों में
स्वयं को मूलसत्ता में
विलय का
प्रयास करता रहता है।
यही जीवन गति है।

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